Sunita gupta

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दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय वक्त

वक्त

समय का यह परिंदा तू , कहां कहां जा रहा।।
हमने चलकर पूछा तू, बोल कहां जा रहा।।

वक्त ने समझाया मैं, मुसाफिर हूं अजब।।
चलते रहता हूं मैं तो, मुसाफिर हूं गजब।।

राहों में बोलो और, सुस्ताते ना क्यों।।
उम्र का है तकाजा ये, घटाते जाते क्यों।।

आराम करना तूने तो,ना ही नहीं सीखा कभी।।
तू तो चलते रहते व, इस चिड़िया देखा नहीं।।

एक दिन वक्त ने आ हमसे रूबरू हुए।
वक्त ने पूछा हमसे ऐ क्या चल ना तुझे।

हमने हंसकर पूछा ऐ बोलो मेरे सखे।
साथ कब तक दोगे रे यह बताओ मुझे।

ऐसा पूछो ना हमसे ओ हो मेरे सनम।
साथ देता उनको ही जो मेरे संग चले।

राहों में यूं न बैठकर , तू ना सोचा ना कर।
मैं दस्तकें देता रहा, सभी दरवाजे पर।

साथ चलने की अब तो, करो फैसला सनम।
रात ढल अब चुकी है, कदम बढ़ाओ सनम।
        🙏🙏🙏

सुनीता गुप्ता सरिता कानपुर 

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7 Comments

Mahendra Bhatt

04-Nov-2022 02:45 PM

बहुत खूब

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Pratikhya Priyadarshini

03-Nov-2022 11:57 PM

Bahut khoob likha hai 💐👍

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Palak chopra

03-Nov-2022 11:08 AM

Shandar 🌸

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